कैंसर क्या होता है, क्या है कैंसर, Types Of Cancer In Hindi, क्या होते हैं इसके लक्षण, कैंसर की ग्रेड, Cancer Ka Treatment, कैन्सर से कैसे बचें? 

कैंसर क्या होता है – 


कर्क रोग या कैंसर दुनिया में फैली हुई एक ऐसी भयवाह बीमारी है जिससे लोग बहुत अधिक डरते हैं। आपको बता दूं की कैंसर के बारे में कुछ एक आध ऐसी बातें हैं जो हमे जानना बहुत जरुरी है ताकि हम अपनी और किसी और की भी मदद कर पाएं।


क्या है कैंसर?

आमतौर पर कैंसर सेल या कैंसर की कोशिकाएं हम सभी के शरीर में होती हैं। हमारे शरीर में सभी कोशिकाएं निरंतर बनती और खत्म होती रहती हैं पर यूँ ही किसी कोशिका का अचानक तेज़ी से अनियंत्रित तौर पर बढ़ना और एक ट्यूमर में रूप में बन जाना ही कैंसर है। इसे कार्सिनोमा (carcinoma),नियोप्लास्म (neoplasm) और मेलेगनंसी (malignancy) भी कहते हैं।

Cancer images

Cancer Kaise Hota Hai

कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक टिमोथी विल का कहना है की कोशिकाओं की विभाजन की प्रक्रिया जब बेकाबू हो जाती है तो Cancer होता है शरीर की कोशिकाओं के बँटवारे पर हमारे जीन का कंट्रोल होता है। शरीर विभिन्न कोशिकाओं से मिलकर बना होता है शरीर में बदलाव होने के कारण यह कोशिकाएं बदलती रहती है।
जब यह कोशिकाएं अनियंत्रित होकर बढती है और पूरे शरीर में भी फैल जाती है तब यह शरीर के दूसरे हिस्सों को काम करने में परेशानी देती है। जिस वजह से उन हिस्सों पर कोशिकाओं की गाँठ या ट्यूमर बन जाता है जिसे Cancer कहते है और यही ट्यूमर सबसे घातक होता है जो बढ़ता जाता है।

Types Of Cancer In Hindi

कैंसर लगभग 100 से ज्यादा होते है। लेकिन कुछ कैंसर ऐसे होते है जो इंसानों में मुख्य रूप से देखे जाते है। जिनके बारे में हम आपको आगे बता रहे है। तो जानते है Cancer Ke Prakar के बारे में।

गर्भाशय का कैंसर

छोटी उम्र में विवाह होना, अधिक प्रसव होना, संसर्ग के दौरान रोग, प्रसव के दौरान गर्भाशय में किसी प्रकार घाव और वह सही होने के पहले ही गर्भधारण हो जाता है तो 40 की उम्र के बाद गर्भाशय का कैंसर होने का खतरा होता है। मेनोपॉज के बाद रक्तस्त्राव होना, पैरो में दर्द होना इसके लक्षण होते है। यह कैन्सर धीरे-धीरे बढ़ने वाला होता है जो कई वर्षों (15-20) में विकसित होता गया है। इस कैन्सर का कारक ह्यूमन पैपीलोमा वायरस (एच.पी.वी.) जो संक्रमण द्वारा संसर्ग के दौरान या फिर अन्य कारकों जैसे पति-पत्नी दोनों ही द्वारा अपने जननांगों को ठीक से स्वच्छ न रखना। इसका सबसे अधिक संक्रमण अक्सर 15 वर्ष या कम आयु में प्रथम लैंगिक संसर्ग, एक से अधिक लोगों से संसर्ग (जो गर्भाशय ग्रीवा को क्षति पहुँचाकर उसे संक्रमण हेतु अधिक सुग्राह/गृहणशील/ससेप्टिबिल बना देता है। इसके अतिरिक्त एच.आई.वी. संक्रमण, हर्पीज सिम्पलेक्स, क्लेमाइडिया व गोनोरिया भी इसके कारक हो सकते हैं। इसका निदान लिक्विड बेस्ड पैप टेस्ट (उचित होगा यदि एच.आई.वी. के टेस्ट के साथ किया जाय) द्वारा किया जाता है जिसे जीवोति परीक्षण (बायोप्सी) द्वारा सुनिश्चित भी कर लेना आवश्यक है। प्रारम्भिक अवस्था में इस कैन्सर के रोगी में कोई स्पष्ट लक्षण दिखाई नहीं देते, परन्तु बाद की अवस्था में संसर्ग के दौरान पीड़ा होना, रक्तस्राव, अनावश्यक तरल स्राव योनि मार्ग से होना, तथा लम्बे समय से चला आ रहा/जीर्ण (क्रॉनिक) कमर दर्द आदि लक्षण देखे जा सकते हैं।

स्तन कैंसर

ज्यादा प्रसव व शिशु को स्तन पान ना कराने से स्तन कैंसर होता है। डिबग्रंथी (ओवरी) से जो हार्मोन उत्सर्जित होते है वह भी स्तन कैंसर को पैदा करते है। टाटा मेमोरियल सेन्टर, मुंबई के आंकड़ों के अनुसार शहरीय भारत में 22 में से 1 महिला को उसके जीवन में स्तन कैन्सर हो सकता है। इसका शिकार सबसे अधिक 43-46 वर्ष की महिलायें होती देखी गई हैं परन्तु, विशेषज्ञों ने 20-30 वर्ष की महिलाओं में भी इसे होते देखा है। इसके लिये आवश्यक है स्वतः स्तन परीक्षण (वी.एस.ई./ब्रेस्ट सेल्फ इग्जामिनेशन) जो महिलाओं को 20 वर्ष की आयु के पश्चात नियमित रूप से करना चाहिये जिससे उनमें होने वाले परिवर्तनों जैसे लाली, गांठ, तरल पदार्थ निकलना आदि को ध्यान से देखना चाहिये। स्वतः परीक्षण के बाद 40 वर्ष की आयु तक नियमित समय पर किसी स्त्री-रोग विशेषज्ञ (गाइनोकोलॉजिस्ट) से परीक्षण करवाना चाहिये। निदान के लिये अल्ट्रासाउन्ड (स्तन व गांठ विशेषकर), एक्स-रे परीक्षण (मैमोग्राफी) के साथ-साथ एम.आर.आई. कराना चाहिये तथा आवश्यक हो तो एफ.एन.ए.सी. विधि द्वारा विकृति विज्ञानी जाँच के साथ मिलाकर सारी चीजों के संदर्भ में देखना चाहिये। यहाँ यह भी आवश्यक बताया जाता है कि जाँच करने की आवश्यकता है कि इस गांठ की कोशिकायें इस्ट्रोजन के प्रति संवेदी तो नहीं हैं (क्योंकि इससे हार्मोन चिकित्सा कारगर हो सकती है)। अतः कुछ नये टेस्ट जैसे इस्ट्रोजन रिसेप्टर ऐसे, प्रोजेस्ट्रॉन रिसेप्टर ऐसे, एच.ई.आर. 2 (ह्यूमन इपीडर्मल ग्रोथ फैक्टर रिसेप्टर 2, जो कैन्सर की कोशिकाओं की वृद्धि को प्रोत्साहित करता है) भी निदान व पुष्टि हेतु उपयोग में लाये जा रहे हैं।

मुख का कैंसर

तम्बाकू का सेवन करना मुख और गले के कैंसर होने के का मुख्य कारण होता है। मुख में कोई गाठ, मुँह में सफ़ेद दाग, घाव या पित्त का बन जाना मुँह खोलने और बोलने में तथा निगलने में दिक्कत होना मुख के कैंसर का कारण होता है। भारत वर्ष में इसके रोगियों की संख्या अधिकतम देखी गई है, इनमें से 70% को तब ज्ञात होता है जब वे स्टेज थ्री व स्टेज फोर तक पहुँच जाते हैं। मुँह का कैन्सर जीवन शैली से सम्बद्ध होता है तथा इसका प्रमुख कारण तम्बाकू का सेवन है। इसके अतिरिक्त नियमित व अत्यधिक मद्यपान भी इसका कारक हो सकता है। कभी-कभी दाँतों की धार अधिक पैनी हो जाती है जिससे मुँह में घाव आदि हो जाने से भी यह रोग हो सकता है। इसके प्रमुख लक्षण मुँह में घाव/जख्म का होना (जो 3 सप्ताह से ऊपर का हो गया हो) मुँह में लाल या श्वेत रंग दाग/धब्बा/पैच दिखना, मुँह खोलने में तकलीफ होना तथा गर्दन में दर्द आदि होते हैं

रक्त कैंसर

एक्सरे और विकिरण प्रणाली की वजह से किरणें यदि शरीर के अंदर प्रवेश हो जाती है तो यह अस्थियों को प्रभावित कर देती है। जिससे उसके अंदर खून के सेल्स भी प्रभावित होते है। बुखार का बहुत दिनों तक बने रहना, जोड़ों व हड्डियों में दर्द, मुख से खून निकलना, प्लीहा व लसिका ग्रंथियों के आकार में वृद्धि होना, सांस लेने में दिक्कत होना रक्त कैंसर के कारण हो सकते है।

लंग कैंसर

ख़ासी के साथ खून आना, निरंतर हल्की ख़ासी बने रहना, आवाज़ में बदलाव आना, सांस लेने में दिक्कत होना लंग कैंसर के कारण होते है।

सर्वाइकल कैंसर

इसकी प्रारंभिक अवस्था भूख की कमी होना, पीड़ा, वजन कम होना, एनीमिया होना है।

आमाशय का कैंसर

खून की कमी होना, कभी-कभी खून की उल्टी होना, पेट में दर्द होना, भूख कम लगना इस कैंसर के लक्षण हो सकते है।

ब्रेन कैंसर

ब्रेन कैंसर में मस्तिष्क में या स्पाइनल कार्ड में गाँठ होती है। जिसके कारण उल्टी होना, चक्कर आना, सांस लेने में दिक्कत, भूलने जैसी बीमारी होती है।
कैंसर शरीर के किसी भाग के ऊतक में उत्पन्न हो सकता है। ऊतकों की प्रकृति के आधार पर इनका वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है-

1. उपकलार्बुद (कार्सिनोमा) - इस प्रकार के दुर्दम अर्बुद उपकलाकी कोशिकाओं में बनते हैं।
2. ग्रन्थिलार्बुद (एडीनो कार्सिनोमा) - ये अधिकतर दुर्दम होते हैं तथा ग्रन्थिल ऊताकों में उपस्थित कोशिकाओं में बनते हैं।
3. लसिकार्बुद (लिम्फोमा) - शरीर में लसीकाम ऊतक से बने हुए कैन्सर जैसे- हॉजकिन्स डिजीज।
4. लसिका सार्कोमा (लिम्फो सार्कोमा) - अधिकांश दुर्दम अर्बुद जो लसिकाम ऊतक में बनते हैं जैसे- लिम्फोसर्कोमा ऑफ इन्टस्टाइन।
5. सार्काबुद (सार्कोमा) - संयोजी ऊतक (कनेक्टिव टिश्यू) जैसे- पेशियों, हड्डियों आदि में बनने वाले अधिकांश दुर्दम अर्बुद जो मूत्राशय, वृक्कों, यकृत, प्लीहा, फेफड़ों आदि को प्रभावित कर सकते हैं।
6. हरितार्बुद/तीव्रश्वेत रक्तता (ल्यूकीमिया) - अस्थिमज्जा व रक्त में उत्पन्न लसिकाभ (लिम्फ्वाइड) या रक्तोत्पादक (हीमैप्वाइटिक) ऊतक में पाया जाने वाला दुर्दम अर्बुद।
7. हिमैन्जियोसार्कोमा - रक्त वाहिनियों का दुर्दम अर्बुद जो अन्तः कला (इन्डोथीलियम) एवं तन्तुप्रस (फाइब्रोब्लास्ट) ऊतक का बना होता है।
8. एमीलोब्लास्टोमा - जबड़े विशेषकर निचले जबड़े का अर्बुद जो दुर्दम भी हो सकता है तथा इसमें इनेमेल की विशिष्ट होती है।
9. यकृतार्बुद (हिपैटोमा) - यकृत में पाया जाने वाला एक दुर्दम अर्बुद।
10. हीमैन्जियोब्लास्टोमा (रक्त वाहिका प्रस अर्बुद) - मस्तिष्क का एक कोशिका- रक्त वाहिका अर्बुद जो अधिकतर अनुमस्तिष्क में होता है।

क्या होते हैं इसके लक्षण

  • असामान्य गाँठ होना (tumour)
  • रक्त-स्त्राव (bleeding) होना
  • वजन घटना (बिना कारण के)
  • भूख कम लगना
  • थकान होना
  • रात को बहुत पसीना आना
  • खून की कमी होना (anaemia)
  • खांसी आना
  • हड्डियों में दर्द होना
  • निगलने में तकलीफ होना
  • मुंह और गले के छाले जो ठीक न हो
  • यूरिन में तकलीफ होना, ब्लड आना
  • गले में खराश रहना

ये हो सकते हैं सम्भावित कारण

  • तम्बाकू या पान मसाला के कारण
  • शराब के कारण
  • मेहनत न करने के कारण
  • हेपटाइटिस B और C के कारण
  • अनुवांशिक कारण
  • किसी प्रकार के इन्फेक्शन के कारण
  • किसी दवा के कारण
  • आधुनिक जीवन-शैली के कारण

स्टेज के आधार पर ये होतें है प्रकार

ग्रेड द्वारा पता किया जाता हैं कि ट्यूमर सेल्स नॉर्मल सेल्स से कितनी अलग हैं।

कैंसर की ग्रेड निम्न प्रकार की होती हैं

  • ग्रेड 1- इसमें कैंसर सेल नार्मल सेल के समान दिखती है, और यह धीरे-धीरे बढ़ता है।
  • ग्रेड 2- इसमें भी नॉर्मल सेल के समान होता है, परन्तु यह बहुत तेजी से बढ़ती हैं।
  • ग्रेड 3...इसमें कैंसर सेल बहुत तेजी से बढती हैं, और एब्नार्मल दिखती हैं।

महिलायों के खास लक्षण जिन्हें अनदेखा न करें

ब्रेस्ट में किसी भी प्रकार का बदलाव आना। निप्पल का अन्दर की और मुड़ना या निपल से किसी प्रकार का डिस्चार्ज होना। किसी भी प्रकार की गठान या scar होना। थकान, ब्लीडिंग, बिना किसी कारण के वजन कम होना। दर्द होना। लिम्फ-नोड में बदलाव होना।

कुछ जानने योग्य बातें

  • व्यक्ति के जीवन में शरीर में कम से कम छ: बार कैंसर की कोशिकाओं के निर्माण होता है।
  • जब शरीर की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है तो कैंसर के सेल अपने आप खत्म हो जाते हैं।
  • कैंसर होते ही शरीर में कई कमियाँ हो जाती हैं चाहे वो जेनेटिक हो या भोजन सम्बन्धित या पर्यावरण सम्बन्धित हो या फिर जीवन शैली के कारण, जिससे उभरने के लिए अच्छी डाइट का होना ज़रूरी है।
  • निदान के समय की गयी कीमोथेरेपी वास्तव में तेज़ी से बढने वाले इन सेल्स को ज़हरीले पदार्थ से खत्म करने की प्रक्रिया होती है जो उसी समय शरीर के स्वस्थ सेल्स को भी नष्ट करती है।
  • इस ट्रीटमेंट से लीवर;किडनी; हृदय; फेफड़े और अन्य अंगों को नुकसान होने की काफी आशंका होती है।
  • चीनी से कैंसर के सेल्स को ताकत मिलती है। इसलिए आमतौर पे चीनी का कम इस्तेमाल करके हम कैंसर के सेल्स को बढने से रोक सकते हैं।
  • चीनी के बाजारू विकल्प और भी अधिक हानिकारक होते हैं ऐसे में अधिक ज़रूरत पड़ने पर बहुत ही कम मात्रा में शहद का इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • दूध भी हानिकारक साबित हो सकता है। इससे बनने वाला म्यूकस कैंसर सेल्स का भोजन होता है। इसकी जगह हम सोया मिल्क का प्रयोग कर सकते हैं।
  • मांसाहारी भोजन भी कैंसर सेल्स को तेज़ी से बढने में मदद करता है क्योंकि इनमे एसिड्स होते हैं जो इन सेल्स को जल्दी ही कई गुना होने का माहौल बना कर देते हैं।
  • हरी सब्जियां; कुछ फल; होल ग्रेन; बीज; नट्स और जूस शरीर को ताकत देते हैं। एंजाइमस को बढ़ाने के लिए दिन में २ से ३ बार ताज़ी सब्जियों का जूस पीने या उन्हें कच्चे तौर पर खाने से लाभ होता है।
  • ग्रीन टी एक बेहतरीन विल्कप है।
  • शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ने से कैंसर सेल्स को बनने का माहौल नहीं मिलता है इलसिए नियमित तौर पर व्यायाम करें; सुबह ताज़ी हवा में सैर करें और अपने आप को ह्मेशा सकारात्मक रखें।
  • इस बीमारी से जीतना बहुत मुश्किल काम नही बस अपने अंदर की जिजीविषा बनाये रखिये।

Cancer Ka Treatment

डॉक्टर मरीज़ की बीमारी के लक्षण, कैंसर के लक्षण देखकर इलाज करते है। तो आइये जानते है Cancer Ka Ilaj क्या है।

कीमोथेरेपी

कीमोथेरेपी में ड्रग्स और दवाइयों के द्वारा कैंसर के सेल्स को खत्म किया जाता है। कुछ प्रकार की कीमोथेरेपी में आईवी (नसों में सुइयों द्वारा) से इलाज किया जाता है और कुछ  कीमोथेरेपी में दवाई दी जाती है। यह दवाईयां पूरे शरीर में अपना असर दिखाती है और पूरे शरीर में हो रहे कैंसर को ठीक करती है।

सर्जरी

सर्जरी में इफ्फेक्टेड एरिया को शरीर से अलग किया जाता है। जैसे ब्रैस्ट कैंसर है तो ब्रैस्ट को शरीर से हटा दिया जाता है। प्रोस्टेट कैंसर होने पर प्रोस्टेट ग्लैंड को निकाल दिया जाता है लेकिन हर तरह के कैंसर में सर्जरी की जरूरत नहीं होती है ब्लड कैंसर को सिर्फ दवाइयों से सही किया जा सकता है।

रेडीएशन

इसमें कैंसर की जो सेल्स बढती है उन्हें रोका और मारा जाता है। कभी-कभी सिर्फ रेडीएशन या सर्जरी और कीमोथेरेपी के दौरान इससे इलाज किया जाता है। रेडीएशन में पूरे शरीर को एक्सरे मशीन में डाला जाता है। जिससे कैंसर सेल्स को खत्म किया जाता है।

चीन में रिसर्चर्स ने एक ऐसा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम विकसित किया है, जिसके जरिए आंत के कैंसर का शुरुआती अवस्था में ही पता लगाया जा सकता है। यही नहीं, इस सिस्टम से यह भी पता चल सकता है कि बीमारी कितनी गंभीर है और इसके लिए किस तरह का इलाज बेहतर होगा। यह रिसर्च स्टडी 'जर्नल साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन' में पब्लिश हुई है। शोधकर्ताओं के अनुसार, हाउझोंग यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में हुई इस स्टडी से पता चला है कि नए तरीके से आंत के कैंसर के शिकार मरीजों के इलाज में काफी सुविधा होगी। उनका कहना है कि इस तरह के कैंसर का आसानी से इलाज किया जा सकता है, अगर शुरुआती अवस्था में ही इसका पता चल जाए और यह शरीर के दूसरे हिस्सों में नहीं फैले।
पहले कोलोनोस्कोपी से चलता था पता
पहले इस तरह के कैंसर का पता करने के लिए कोलोनोस्कोपी मेथड का यूज किया जाता था। इसे डायग्नोसिस का 'गोल्ड स्टैंडर्ड' माना जाता था। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि यह तरीका काफी असुविधाजनक था और इसमें ज्यादा परेशानी होने की वजह से मरीज इस जांच से बचना चाहते थे। 
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मेथड है कारगर
साइंटिस्ट्स का कहना है कि उन्होंने जिस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मेथड की खोज उन्होंने की है, वह कैंसर का पता लगाने में ज्यादा कारगर है। इस मेथड में मेथेलिएशन मार्कर्स का पता लगाया जाता है, जो कैंसर के ट्यूमर्स के डीएनए में होने वाले केमिकल मोडिफिकेशन होते हैं।
801 मरीजों पर की गई स्टडी

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए आंतों के के कैंसर का पता लगाने के लिए 801 मरीजों पर स्टडी की गई। डॉक्टरों ने उनके ब्लड का प्लाज्मा लिया और उसका विश्लेषण कर एक डायगनॉस्टिक मेथड डेवलप किया। इस मॉडल से करीब-करीब 87.5 प्रतिशत मामलों में सही परिणाम सामने आए। शोधकर्ताओं का कहना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का मेथड आंत के कैंसर का शुरुआती स्टेज में पता लगा पाने में कारगर साबित हुआ है और जल्दी ही इस मेथड का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जाने लगेगा।

कैन्सर से कैसे बचें? - 

यद्यपि यह बहुत सी कठिन बात है कि कैन्सर की रोकथाम के बारे में कुछ कहा जा सके फिर भी कई प्रयास इस दिशा में किये जा रहे हैं। मोटे तौर पर निम्नलिखित निर्देश इसके खतरे से बचाव में संभवतः सहायक सिद्ध हो सकते हैं, ऐसा अनेक वैज्ञानिकों का मत है।

1. नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम, जिस रूप में आप कर सकें, अवश्य करें।
2. वसायुक्त भोजन जैसे मक्खन, डेरी उत्पादन कम मात्रा में ही लें।
3. अपने को यथासंभव पराबैंगनी किरणों (अल्ट्रावायलेट रेंज) से बचा कर रखें।
4. धूम्रपान संभव हो तो न करें, यदि करते हों तो कृपया ऐसे स्थान पर करें जिससे दूसरों की सांस में उसका धुआँ न जाये।
5. मद्यपान में संभव कटौती करें, यदि मद्यपान न करें तो बेहतर होगा।
6. स्त्रियाँ 50 वर्ष की उम्र के पश्चात गर्भाशय-ग्रीवा का नियमित परीक्षण किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ से 3-5 वर्ष में अवश्य करायें।
7. स्वतः स्तन परीक्षण नियमित रूप से करें तथा गांठ, स्राव आदि की स्थिति देखते ही स्त्रीरोग विशेषज्ञ से सलाह लें।
8. स्वस्थ भोज्य पदार्थ जैसे फल, सब्जियाँ आदि प्रचुर मात्रा में प्रयोग करें।
9. स्त्रियाँ सर्वाइकल, स्तन तथा अंडाशयी कैन्सर से बचाव हेतु कम से कम दो वर्ष तक स्तनपान अवश्य करायें, क्योंकि अध्ययनों से पता चलता है कि जो महिलाएँ अपने बच्चों को दो वर्षों तक स्तनपान कराती हैं उनमें स्तन कैन्सर की संभावना 50 प्रतिशत तक कम हो जाती है। साथ ही 30 वर्ष की उम्र के पूर्व बच्चे पैदा कर लेने पर भी स्तन कैन्सर का खतरा कम हो सकता है।
10. अधिक पानी पिया करें जिससे मूत्राशय के कैन्सर की संभावना कम हो जाती है। कम से कम 2 लीटर पानी रोज पीना आवश्यक है।
11. मोटापे को न आने दें तो ज्यादा बेहतर होगा अतः अपने भोजन, क्रियाकलापों, व्यायाम आदि द्वारा यह प्रयास करें कि आपका बेसल मेटाबोलिक इन्डेक्स (बी.एम.आई.) 18.5-25 किलोग्राम/मीटर2 के बीच रहे।
12. ऐसा भी अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि सेलफोन का कम समय तक ही प्रयोग किया करें जिससे सिर के कैन्सर से बचा जा सके। या फिर उसे स्पीकर मोड पर अथवा ईयरफोन पर रखकर सिर से थोड़ी दूर रखें।